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(What was the journey exposed?) आप कुछ खोजने से बेहतर है कि खुद खोज बनकर रह जाओ।
हमेशा की तरह मैं ब्रज की यात्रा करने निकल पड़ा ।
ब्रज में;गोवर्धन के नाम से परिचित गांव में;मैंने रहने की इच्छा व्यक्त की।
वहां पर रहते हुए, मैं अलग-अलग स्थानों पर जाया करता। एक दिन में कुसुम सरोवर की ओर निकल पड़ा।वहां पहुंचकर मैंने,एक पाश्चात्य वासी को निवास करते हुए देखा।उसे देखकर मैं आश्चर्यचकित हुआ और उनकी ओर निकल पड़ा;मैं जैसे ही उनके करीब गया;मैंने देखा,वे साधु वेश में तो थे ही!परंतु उनका उठना बैठना बोलना साधुवाद के रूढ़िवाद से मुक्त था!
जब मैंने उनके जीवन निर्वाह का प्रश्न किया तो उन्होंने बढ़ा सरल उत्तर दिया।
(क्या हम अपने दिल और दिमाग को शरीर से हटा दे तो शरीर का क्या महत्व रहेगा!शरीर की पुष्टि किस लिए होती है?दिमाग और दिल को संतुष्ट रखने के लिए!, अगर आप ऐसा करें,दिल और दिमाग से संतुष्ट और असंतुष्ट इन दोनों कों हि निकाल दे;तब हमारा ध्यान कहां होगा ?सिर्फ और सिर्फ अपने लक्ष्य की और. मेरा जीवन निर्वाह ऐसे ही होता है)

मैं आश्चर्यचकित तो हुआ ही और प्रभावित भी हुआ!
उनका-नाम स्वामी राधाचरण दास था, उनका जन्म America मैं हुआ था , सारी व्यवस्थाओं को छोड़ने पर भी वह खुश थे; उन्हें किसी चीज की कमी महसूस नहीं होती।

वो रोज फूलों की माला बनाया करते और कुसुम सरोवर के कुंड में,अर्पण करते थे!
राधा स्वामी जी के साथ दस मिनट कि यह घटना मुझे क्या सिखाती है? मैंने इस पर विचार किया और मैंने समझ लिया; हमेशा खुश रहने के लिए स्वयं को भूल जाओ,क्योंकि सारी इच्छाएं स्वयं के भीतर होती है।

आप कुछ खोजने से बेहतर है कि,खोज बनकर कर रहे जाओ।

life is a great celebration।
@kamal