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फूलों के कंपन ने गीत रचा
कितने अरसों से धूप खिली है
फूलों के कंपन ने गीत रचा
सुरभि प्रवाह से स्वागत करते
आगमन का वंदन करते
अब ठहरो तुम मुड़ न जाना
क्षितिज-क्षितिज को मेरा वंदन
तमस्विनी का राग, मुर्झा ने आतां
धारण तुम बिन कहा खिले हम
प्रार्थना हे, हम तनय तुम्हारे
निशा विष के सुधा रवी तुम
हे प्रशस्त प्रसन्न हो मुझ पर
अवधी जीवन की तुम पर निर्भर
फूलों के कंपन ने गीत रचा.
@kamal
फूलों के कंपन ने गीत रचा
सुरभि प्रवाह से स्वागत करते
आगमन का वंदन करते
अब ठहरो तुम मुड़ न जाना
क्षितिज-क्षितिज को मेरा वंदन
तमस्विनी का राग, मुर्झा ने आतां
धारण तुम बिन कहा खिले हम
प्रार्थना हे, हम तनय तुम्हारे
निशा विष के सुधा रवी तुम
हे प्रशस्त प्रसन्न हो मुझ पर
अवधी जीवन की तुम पर निर्भर
फूलों के कंपन ने गीत रचा.
@kamal
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