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"सैंडी की टैक्सी"
#mystry #thriller #drama

ASHOK HARENDRA
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| सैंडी की टैक्सी |

जनवरी की कंपकंपा देने वाली ठण्डी रात, फिर उसपर तेज़ बहती हवा, और आसमान में छायी घनघोर घटाएँ जो किसी भी वक़्त बरसने वाली लग रही थीं। रात के ठीक 9 बजकर 10 मिनट हो रहे थे। तेज़ कदमों से चलते हुए उपमा मेट्रो स्टेशन से बाहर निकल रही थी। घर वापसी के लिए आज वह लेट हो गई थी।

उपमा की उम्र लगभग 24 या 25 वर्ष की रही होगी। वह चार्टर्ड अकाउंटेंट्स कोर्स के फाइनल की तैयारी कर रही थी, और दिल्ली शहर की ही एक जानी-मानी चार्टर्ड अकाउंटेंसी फर्म में ट्रैनी थी। उसकी ट्रैनिंग का यह अन्तिम वर्ष चल रहा था। ऑफिस में एक और ट्रेनी थी मानवी, वह उपमा की ख़ास दोस्त थी और दोनों की ख़ूब जमती थी। आज मानवी का जन्मदिन था तो उपमा और अन्य मित्रों ने मिलकर ऑफिस के नजदीक ही एक रेस्तरां में मानवी का जन्मदिन मनाया। सभी ने मिलकर खूब एंजॉय किया था। नतीजतन उसे घर वापसी के लिए यह वक्त हो चला था।

अपेक्षा के मुताबिक़ स्टेशन के बाहर कोई टैक्सी या ऑटोरिक्शा दिखायी नहीं दिया। लम्बी चौड़ी सड़क दूर-दूर तक एकदम सुनसान दिखायी दे रही थी। सड़क पर ट्रैफिक लाइट्स अपना काम सुचारु रूप से कर रही थीं लेकिन ट्रैफिक का वहाँ नामोनिशान तक न था। अमूमन ऐसा नहीं होता कि स्टेशन जैसी जगह के बाहर कोई भी टैक्सी या ऑटोरिक्शा उपलब्ध ही न हो। लेकिन आज जाने ऐसी क्या बात थी कि वहाँ दूर-दूर तक कोई भी दिखायी नहीं दे रहा था। तभी उसे दूर सड़क पर चमकती दो लाइट्स दिखीं जो किसी कार जैसी प्रतीत हो रही थीं या फिर कोई ऑटोरिक्शा भी हो सकता था। यह देख उपमा को आशा की एक किरण दिखायी दी, लेकिन यह क्या? वह वहीं दूर सड़क पर एकदम लड़खड़ाया-सा लगा। और फिर लड़खड़ाता हुआ सड़क के एक तरफ़ किनारे पर जा रुका। जैसे ही वे दो लाईट्स सड़क किनारे रुकीं वैसे ही दूर कहीं आसमान में बिजली गरजने की आवाज़ सुनाई दी। उपमा देखती रही लेकिन वे दो लाईट्स वहीं दूर सड़क किनारे ही रूकी रहीं।

"खैर! कोई और ऑटोरिक्शा आता ही होगा!" उपमा ने सोचा।

वैसे तो वह पहले भी कई बार 10 बजे और उसके भी बाद तक आयी थी, लेकिन आज की तरह कभी उसने सड़क को इतना सुनसान नहीं पाया। शायद इसकी वज़ह ख़राब मौसम और तेज़ सर्दी हो सकती थी। ख़ैर वज़ह जो हो वह तो बस जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहती थी। उसकी माँ भी परेशान हो रही थी और हर थोड़ी देर में उसे फोन कर रही थी।

वह सड़क किनारे खड़ी थी और रह-रहकर स्टेशन के एग्जिट गेट को भी देख लेती थी कि शायद कोई और भी आ रहा हो। ऊपर प्लेटफॉर्म पर उसने कई लोगों को देखा था लेकिन बाहर कोई भी नहीं निकला। बल्कि उसे तो यह एहसास भी नहीं हुआ कि वह अकेली ही बाहर निकली है।

सायं-सायं करती आवाज़ के साथ तेज़ हवाएं जो सामान्यतया सर्दी के मौसम में नहीं चलतीं। रह-रह कर आसमान में दूर कहीं बिजली चमक उठती थी जिससे बादलों में रोशनी हो जाती थी। ये सारे कारण उपमा को बहुत परेशान करने लगे थे। उपमा ने हुड्डी जैकेट में लगी फर वाली कैप से अपने सिर को ढंक लिया, और हाथों को जैकेट की जेबों में ठूंस लिया। अब उसे सर्दी से थोड़ी राहत मेहसूस हुई।

सड़क किनारे खड़ी वह ऑटोरिक्शा का इंतज़ार कर रही थी कि तभी जाने कहाँ से अचानक मोटर बाइक पर सवार एक युवक आया और क़रीब उससे 10 क़दम की दूरी पर रुक गया। उपमा ने एक नज़र उसे देखा और वापस सड़क के दूसरी ओर देखने लगी। युवक ने अपनी मोटर बाइक बन्द करने की ज़हमत नहीं उठायी।

ऐसी सुनसान रात में अकेले खड़े रहना उपमा को परेशान करने लगा। उसने कनखियों से एक नज़र उस युवक को देखा तो पाया कि वह भी उसे ही देख रहा था। उसे इस तरह अपनी ओर देखता पाकर उपमा थोड़ी सहम-सी गई। सुनसान रात में उस युवक और उपमा के अलावा कोई न था। युवक का इस तरह अपनी बाइक स्टार्ट रखकर खड़े रहना उपमा को भीतर से परेशान कर रहा था। किसी अनजान भय से उसके दिल की धड़कन बढ़ गईं। अनाप-सनाप ख़्यालों से वह और भी घबरा गई। उसे कंपकपी का एहसास होने लगा और टांगों में तो जैसे चीटियां-सी काटती लगी।

उपमा अपनी उधेड़-बुन में थी कि तभी युवक ने मेट्रो स्टेशन के एग्जिट गेट की ओर देखकर हाथ हिलाया। उपमा ने भी पलट कर देखा तो पाया कि एक लड़की लगभग दौड़ती हुई बाहर आ रही थी। बदले में लड़की ने भी युवक की ओर हाथ हिलाया। यह देख जैसे उपमा की जान में जान आयी। वह लड़की तेज़ी से आकर उस युवक के साथ मोटर बाइक पर बैठ गई। कुछ ही पलों में वे दोनों हवा की गति के साथ उपमा के सामने से सीधे रेड लाइट की ओर चले गए। उपमा की नज़रों ने तबतक उनका पीछा किया जबतक कि वे उसकी नज़रों से ओझल न हो गए।

अब वह फिर से अकेली खड़ी थी, तुरन्त ही उसने अपनी जींस की पॉकेट से मोबाइल फोन निकाला और वापस स्टेशन के एग्जिट गेट की ओर चहलकदमी करने लगी। चहलकदमी करते हुए उसने ऑनलाइन कैब बुकिंग शुरु कर दी। लेकिन आसपास रेंज में कोई भी कैब शो नहीं हो रही थी। उसने कई बार ट्राई किया लेकिन कोई कैब उपल्ब्ध नहीं थी। उपमा परेशान होने लगी। अभी भी सिस्टम कैब सर्च कर रहा था। तभी अचानक एक कैब शो होने लगी और बुकिंग कन्फर्म हो गई। अगले 10 मिनट में कोई सैंडी नाम का ड्राईवर उसे लेने आने वाला था।

एक गहरी सांस छोड़ते हुए उपमा कैब के आने का इंतज़ार करने लगी। पहली बार ये 10 मिनट उसे 10 घण्टों के बराबर लग रहे थे। अकेले होने की वज़ह से वह एग्जिट गेट से सड़क तक चहलकदमी करते हुए एकदम सतर्क थी। तभी उसके मस्तिष्क में एक विचार बिजली-सा कौंधा। कैब बुकिंग एप में उसे ड्राईवर का फोटो नहीं दिखा था। तुरन्त उसने वापस एप में देखा, वह सही थी। अभी भी ड्राइवर का फोटो नहीं आ रहा था। ऐसा होने की क्या वज़ह हो सकती है, वह सोचने लगी। ख़ैर अब कर भी क्या सकते हैं, कोई टेक्निकल फॉल्ट रहा होगा!

अभी मुश्किल से 6 मिनट ही गुज़रे थे। टहलते हुए जैसे ही वह एग्जिट गेट पर पहुँची, तभी उसके पिछे सड़क पर एक कार आकर रूकी। वह सफ़ेद रंग की होंडा अमेज कार थी। वैसे तो उपमा कैब का ही इंतज़ार कर रही थी, लेकिन इतनी जल्दी पहुँचने की उसे कतई उम्मीद नहीं थी। वह एग्जिट गेट के सामने सड़क पर खड़ी कार को देखती रही। उसे लगा कि शायद कोई होगा जो स्टेशन आया हो। और वैसे भी अभी तक उसे कैब अराइवल का नोटिफिकेशन भी नहीं मिला था। वह ड्राइवर की कॉल आने का वेट करने लगी। थोड़ी देर के इंतज़ार के बाद उस कार के ड्राइवर ने कई बार हॉर्न बजाया। क्योंकि उस कार से अभी तक कोई उतरा भी नहीं था तो उपमा को लगा कहीं यह उसकी कैब तो नहीं? यह सोच वह कार की ओर चल पड़ी। ड्राइवर ने खिड़की का शीशा निचे कर दिया। कार के नज़दीक पहुँचकर उसने देखा कि ड्राइवर कोई आदमी नहीं बल्कि एक लड़की है। वह लड़की कोई 26 वर्षीय मजबूत कद काठी वाली थी, और उसने अपने सिर पर बॉय कैप पहन रखी थी।

"उपमा?" लड़की ने उसका नाम पुकारा।

"हाँ!" उपमा ने ज़वाब दिया।

"आपका फोन नहीं लग रहा था," वह लड़की बोली।

उपमा को बड़ी राहत मेहसूस हुई, कि चलो यह ठीक हुआ। वह नाहक ही परेशान हो रही थी कि पता नहीं कौन ड्राइवर है। नज़दीक जाते हुए उपमा ने देखा कार की विंडस्क्रीन के कोने पर लिखा था, "सैंडी की धन्नो"

तभी कार के दरवाजों के लॉक खुलने की आवाज़ आयी तो उपमा ने अपने कंधे से बैग उतारा और कार का पिछला दरवाज़ा खोला।

"उपमा, आगे ही आ जाओ।" वह लड़की बोली।

"ओके!" कहते हुए उपमा ने पिछला दरवाज़ा बन्द किया और आगे उसके साथ वाली सीट पर बैठ गई।

वैसे भी एक लड़की के साथ आगे बैठने में उसे कोई आपत्ति नहीं थी। दरवाज़े फिर से लॉक हो गए और लड़की ने बटन दबाकर शीशा वापस ऊपर कर दिया। अभी शीशा ऊपर हुआ ही था कि तभी बारिश शुरू हो गई। यह मोटी बूँदों के साथ एकदम तेज़ बारिश थी। बारिश शुरु होते ही "कड़-कड़-कड़" की भयंकर आवाज़ और चकाचौंध रोशनी के साथ आसमान में बिज़ली गरजी। एक बार को तो सबकुछ थर्रा उठा। लड़की ने आसमान में देखने की कोशिश की और फिर उपमा की ओर देखकर मुस्करा दी।

"ओके! चलते हैं," वह लड़की बोली।

कहकर लड़की ने फर्स्ट गीयर डाला और कार सामने रेड लाइट की ओर दौड़ा दी। डैशबोर्ड के स्क्रीन पर जीपीएस डायरेक्शन ऑन थी, जो आगे रेड लाइट से यू टर्न दिखा रही थी। डायरेक्शन उपमा के घर की ओर ही थी।

***

स्टेशन से चले हुए क़रीब 10 मिनट्स हो चुके थे, बारिश अभी भी जोरों पे थी। आसमान में घने बादलों के बीच बार-बार गर्जन के साथ बिज़ली चमक रही थी। कार के पहियों से बरसात के पानी की बौछारें दूर तक उड़ रही थीं। सड़क पर कार दौड़ी चली जा रही थी और उसकी पिछली लाईट्स से सड़क लाल रंग में नहाई-सी प्रतीत हो रही थी।

तेज़ हवाओं के साथ मूसलाधार बारिश के थपेड़े ज़ोर - शोर से कार के विंडस्क्रीन से टकरा रहे थे। उस तूफ़ानी बारिश में सड़क पर देखना लगभग मुश्किल हो रहा था। लड़की ने विंडस्क्रीन वाइपर को फुल स्पीड कर दिया ताकि बारिश का पानी जल्दी - जल्दी विंडस्क्रीन से हटता रहे और सड़क पर देखना आसान हो जाए।

"ऐसी तूफ़ानी बारिश में गाड़ी चलाना काफ़ी मुश्किल हो जाता है," उस लड़की ने उपमा से कहा।

"हाँ, यह तो है!" उपमा ने उसकी ओर देखते हुए कहा।

"और लगता है घण्टों यही हाल रहने वाला है," लड़की फिर उपमा से बोली।

उपमा ने सहमति में अपना सिर हिलाया, "हुम्म!"

"मेरा नाम संध्या चौधरी है," लड़की बोली।

"अच्छा?" उपमा ने आश्चर्य ज़ाहिर किया।

"लेकिन मुझे सैंडी नाम ही पसन्द है," फिर उसने स्टीयरिंग व्हील पर हाथ फेरते हुए कहा, "और यह है मेरी धन्नो!"

उपमा की निगाहें ख़ुद-ब-ख़ुद सामने विंडस्क्रीन पर चली गईं जहां "सैंडी की धन्नो" अन्दर से उल्टा लिखा हुआ दिख रहा था।

"आपने अपनी धन्नो का नाम शीशे पर भी लिखा है," कहकर उपमा हंस दी।

सैंडी ने भी हंसकर सहमति में सिर हिलाया।

"और मेरा नाम उपमा त्रिवेदी है।" उपमा ने सहज होते हुए अपना परिचय सैंडी को दिया।

"प्यारा नाम है," सैंडी बोली, "वैसे उपमा, आप करती क्या हो?"

"मैं स्टूडेंट हूँ, सीए फाइनल," उपमा ने बताया।

"अच्छा! पढ़ती हो!" सैंडी ने फिर पूछा, "तो इस समय किस स्कूल से आ रही हो?"

"स्कूल नहीं, ऑफिस। मेरी आर्टिकलशिप चल रही है," उपमा ने बताया।

"आर्टिकलशिप?" सैंडी बोली।

"ट्रेनिंग," उपमा बोली।

"हाँ वो तो समझ गई," सैंडी ने एक नज़र उपमा को देखा और पूछा, "क्या हमेशा इसी समय आती हो?"

"नहीं, कभी - कभी," उपमा ने बताया, "रूटीन में तो जल्दी ही घर पहुँच जाती हूँ,"

"तो आज वो कभी-कभी वाला टाइम है?" सैंडी मुस्कराई।

"हुम्म, कह सकती हो!" उपमा ने भी हँसते हुए कहा।

दोनों एक साथ हँस पड़ी।

फिर कुछ सोचते हुए सैंडी ने पूछा, "वैसे आज लेट क्यों हो गई तुम?"

उपमा ने चौंककर सैंडी को देखा, वह आप से एकदम तुम पर उतर आई। और फिर वह इतनी पूछताछ क्यों कर रही है, यह बात उपमा को बिलकुल भी पसन्द नहीं आयी। उपमा उसके सवाल पर ख़ामोश बनी रही।

"ओह, सॉरी!" सैंडी तुरन्त बोली, "क्या मैं तुम्हें, तुम कहके बुला सकती हूँ?" वह बोली।

उपमा ने कोई ज़वाब नहीं दिया। थोड़ी देर दोनों के बीच ख़ामोशी बनी रही।

"मुझे इस तरह नहीं पूछना चाहिए," सैंडी विनम्रता के साथ बोली, "मैं तो बस बात-चीत करते रहने के लिए पूछ रही थी,"

उपमा ने सैंडी की ओर देखा तो सैंडी ने एक बड़ी-सी मुस्कराहट दी। उपमा भी धीरे से मुस्करा दी।

"क्या फ़र्क पड़ता है, थोड़ी देर की ही तो बात है," उपमा ने सोचा और वह सैंडी से बोली, "कोई नहीं, आप मुझे तुम कह सकती हो।"

"और तुम भी मुझे आप मत कहो, मैं तुमसे ज़्यादा बड़ी नहीं हूँ," सैंडी बोली।

उपमा को सैंडी कुछ अजीब लड़की लग रही थी। उसे अपने काम से काम रखना चाहिए, लेकिन वह कुछ ज़्यादा ही सवाल ज़वाब कर रही है। बोलने के मामले में वह पूरी तरह शोले की बसंती ही लग रही थी। वह उपमा के साथ ज़्यादा ही घुलने - मिलने की कोशिश कर रही है। उपमा के कुछ न बोलने पर सैंडी भी चुप हो गई और ध्यान से देखते हुए ड्राइव करने लगी। फिर सामने एक चौराहा दिखाई दिया, जहाँ रेड लाईट जल - बुझ रही थी। उस चौराहे से सैंडी ने कार को धीरे -धीरे पार किया।

"तुम्हारी मम्मी का फोन नहीं आया अभी तक?" चौराहा पार होते ही सैंडी बोली, "नेटवर्क तो है न तुम्हारे फोन में?"

उपमा ने हैरानी से सैंडी को देखा और न चाहते हुए भी उसकी तर्जनी उंगली ने मोबाईल का पॉवर बटन दबा दिया। नेटवर्क बिल्कुल ठीक दिखाई दे रहा था। अब तो उपमा को भी लगने लगा कि अपनी माँ को फ़ोन कर देना चाहिए। उसने अभी ऐसा सोचा ही था कि वाइब्रेशन के साथ मोबाइल झनझना उठा साथ ही रिंग बजने लगी। यह उसकी माँ की कॉल थी। उपमा अपने मोबाइल को ऐसे देख रही थी जैसे वह कोई अजूबा हाथ में लिए हो। उसने देखा सैंडी इत्मीनान से कार चलाने में मग्न थी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि सैंडी ने ऐसा क्यों कहा कि माँ का फोन नहीं आया, और उसके कहते ही फोन आ भी गया।

उपमा ने कॉल रिसीव किया, "हैलो, मम्मी,"

उधर से कुछ कहा गया।

"हाँ अभी कैब में हूँ, बारिश तेज़ हो रही है," उपमा ने ज़वाब दिया, "हाँ जल्दी पहुँच जाऊंगी,"

उधर से फिर कुछ कहा गया तो उपमा बोली, "ओके ध्यान रखूँगी, हाँ वह भी कर देती हूँ।"

कॉल डिस्कनेक्ट होते ही उपमा ने व्हाट्सएप खोला और अपनी लाइव लोकेशन माँ को शेयर कर दी। उसे लोकेशन शेयर करते सैंडी देख चुकी थी। लोकेशन भेजकर उपमा ने राहत की साँस ली, और फिर सैंडी की ओर देखा। सैंडी ने एक फीकी-सी मुस्कराहट दी। सैंडी की यह मुस्कराहट उपमा को थोड़ी अजीब लगी।

सड़क पर देखते हुए उपमा सोचने लगी, "मुझे क्या? मुझे कौन से इसके साथ उम्र गुजारनी है?"

"ऐसे ख़्याल मन में नहीं रखने चाहिए," सैंडी धीरे से बोली।

उपमा ने सैंडी की तरफ़ देखा। वह पूरे इत्मीनान के साथ सामने देखती हुई कार चला रही थी।

"तुमने कुछ कहा?" उपमा ने पूछा।

सैंडी सामने देखते हुए बोली, "यह दुनिया तुम्हारी और मेरी सोच से कहीं ज़्यादा रहस्यमयी है, उपमा!"

उपमा का दिल ज़ोर से धड़क उठा, वह धीरे से बुदबुदाई, "तो क्या इसे पता चल गया कि मैं क्या सोच रही थी?"

उपमा ने हैरानी से सैंडी को देखा, मगर सैंडी ने उपमा की तरफ़ नहीं देखा। उपमा के भीतर एक अनजाना-सा डर छाने लगा। सैंडी साधारण लड़की नहीं लग रही थी, वह अब और भी ज़्यादा रहस्यमयी लगने लगी थी।

"तुम किस बारे में बात कर रही हो?" उपमा ने थोड़ा हिचकते हुए उससे पूछा।

सैंडी ने कोई जवाब नहीं दिया, वह चुपचाप कार चलाती रही। जैसे उसने उपमा को सुना ही न हो। कार में ख़ामोशी छा गई। उपमा भी खामोशी के साथ सामने सड़क पर देखने लगी। जितनी ख़ामोशी कार के भीतर थी उतना ही बारिश का शोर बाहर था। कार अब मुख्य सड़क से उतरकर संकरी-सी सड़क पर पहुँच गई थी, जहाँ किसी-किसी खम्बों पर लाईट्स नहीं थी।

कार की रोशनी से अंधेरी सड़क रोशन होती जा रही थी और उस रोशनी में बारिश की बूंदें बरसती दिख रही थीं। वैसे तो उपमा का घर अब नज़दीक ही था। लेकिन सैंडी की ख़ामोशी उपमा से बर्दास्त नहीं हो रही थी। उपमा ने कई बार बोलना चाहा लेकिन सैंडी के अज़ीब व्यवहार के कारण वह कुछ न कह सकी। जाने क्यों उपमा को सैंडी का चेहरा एकदम सफ़ेद नज़र आ रहा था, जैसे उसके जिस्म से सारा ख़ून निचोड़ लिया गया हो। वह पत्थर - सी बनी एकटक सामने देखते हुए कार चला रही थी। कुछ ही देर में बारिश भी थम गई लेकिन कोई-कोई बूंदें यदा-कदा अब भी गिरती दिख रही थी।

थोड़ी और देर बाद फिर वह पल भी आ गया जिसका उपमा को बेसब्री से इंतज़ार था, क्योंकि अब उसका का घर आ गया था।

"सैंडी! यहीं रोक दो," उपमा बोली।

कार रूक गई। उपमा ने मोबाइल में देखा, 10 बजकर 10 मिनिट हो रहे थे। उपमा ने पेमेंट करने के लिए गूगल - पे खोल लिया।

"तुम्हारे साथ मुझे बहुत अच्छा लगा," कार से उतरते हुए उपमा बोली, "गुड नाईट, सैंडी,"

"नोबॉडी नो, विच नाइट इज गुड एंड विच इज बेड!" सैंडी बोली।

इससे पहले कि उपमा कुछ समझ पाती, सैंडी ने एक्सीलीरेटर दबा दिया। कार धीरे - धीरे आगे बढ़ने लगी। सैंडी बिना किराया लिए ही चली गई। उपमा को जानें क्या सूझा उसने मोबाइल से जाती हुई कार का फोटो ले लिया। कुछ ही देर में सैंडी की कार अंधेरे में गायब हो गई।

"बड़ी अजीब लड़की है!" कहते हुए उपमा ने एक गहरी सांस ली और अपने घर की डोर बेल बजा दी।

***

सुबह के 8 बजकर 30 मिनिट रहे थे। उपमा ने माँ का ज़्यादातर काम निपटवा दिया था। माँ अब किचन में थी और उपमा नहा-धो कर तैयार हो, डाइनिंग टेबल पर नाश्ते का इंतज़ार कर रही थी। उपमा ने टेबल पर रखा अख़बार उठाया और ख़बरों पर सरसरी नज़र मारने लगी।

उसने अख़बार का तीसरा पेज पलटा, एक ख़बर पढ़ते ही उसकी नज़रें उस ख़बर पर जम-सी गईं। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका सारा ख़ून निचोड़ लिया है। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था, उसने फिर से उस ख़बर को पढ़ा:

"शहर के शर्राफा व्यापारी सुधीर चौधरी की इकलौती बेटी संध्या चौधरी उर्फ़ सैंडी की कल रात एक सड़क हादसे में मौत हो गई।

यह हादसा कल रात करीब 9 बजे के आसपास मेट्रो स्टेशन रेडलाइट पर हुआ। कोई चश्मदीद गवाह न होने के कारण एक्सीडेंट की सही वजह सामने नहीं आई है। लेकिन माना जा रहा है कि ख़राब मौसम और तेज़ गति होने के कारण सन्तुलन खो जाने से कार सड़क किनारे जा टकराई।"

ख़बर पढ़कर उपमा को तो जैसे सदमा लग गया था। उसकी नज़रें अख़बार में छपी तस्वीर पर चिपक कर रह गईं थीं। तस्वीर में वही कार थी जिसमें सैंडी ने उपमा को उसके घर पर छोड़ा था। उपमा की निगाहें कार की नंबर प्लेट पर गईं वह चौंक गई। कार तो वही है लेकिन वह प्राइवेट कार है न कि कोई कमर्शियल। यह तो उसने भी ध्यान नहीं दिया था कि वह कैब थी या प्राइवेट कार?

तभी उसे कुछ ख़्याल आया, उसने दौड़कर चार्जिंग से अपना मोबाइल निकाला और आनन-फानन फोटो चेक करने लगी। उसे याद आ गया था कि रात उसने सैंडी की कार का पिछे से फोटो लिया था।

फोटो में हू-ब-हू वही कार थी जो अख़बार में छपी थी, इसका मतलब वह कोई कैब नहीं थी और न ही सैंडी कैब चलाती थी।
फिर से उसके मस्तिष्क में एक विचार कौंधा। उसने कैब बुकिंग एप खोली और अपनी बुकिंग हिस्ट्री देखनी चाही। अब फिर से एक और झटका उसे लगा। उसने पाया कि कल रात कोई भी कैब बुकिंग नहीं की गई थी।

यह सब क्या था उपमा की समझ से बाहर था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। सैंडी का एक्सीडेंट 9 बजे के आसपास माना जा रहा है, और सैंडी उसे पिक करने करीब साढ़े 9 बजे आई थी। फिर रात को 10 बजकर 10 मिनट पर उसे घर पर छोड़ा। मतलब, यह सब कैसे सम्भव हो सकता है?

यह सब देख और सोचकर उपमा का दिमागी संतुलन हिल-सा गया था। यह सब कैसे हो पाया उसे बिलकुल समझ नहीं आ रहा था। उसने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया। उसके कानों में सैंडी की बातें गूंजने लगी।

"यह दुनिया तुम्हारी और मेरी सोच से कहीं ज़्यादा रहस्यमयी है, उपमा!"

इन सब बातों से परेशान उपमा को ज़रा भी भनक नहीं थी कि उसके ठीक पीछे सैंडी खड़ी थी जो उपमा को ही देख रही थी, लेकिन वह किसी को दिखाई नहीं दे रही थी।

"तुम्हें नहीं पता उपमा कि तुमने मुझे अपने साथ लाकर मुझपर एक बड़ा एहसान किया है!" सैंडी के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी।
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