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किनसे सीखा मैंने, सादगी ज़िन्दगी की..
ना किसी से कोई बैर, ना किसी से थी शिकायत, आख़िर उन्होंने एक सादगी भरी ज़िन्दगी जो जी थी। उस ज़माने में शायद इसी को जीना कहते थे, जब हर रोज़ दो वक़्त की रोटी का इन्तज़ाम ख़ुद के लिये और अपने परिवार के लिए कर पाना ही ज़िन्दगी में असल मायने रखता था।

वैसे तो अनेकों उदाहरण होंगे, मगर मैं अपने पूजनीय दादाजी के बारे में आज बताने जा रहा हूँ। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में उन्होंने दो बेटों और दो बेटियों को पाल पोसकर बड़ा किया, और बड़ी ही मेहनत से एक सरकारी स्कूल में बतौर अध्यापक के रूप में कार्य किया। स्कूल के...