...

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@Life_Diary

कमज़ोर शरीर , हाथ– पैरों पर कोई बस नहीं.... साथ आए व्यक्ति में से एक ने पैर उठाकर व्हील चेयर पर रखा... थोड़ी देर के लिए बुजुर्ग ने अपनी आँखें खोली.... जाने उस एक क्षण में क्या था... निस्तेज आँखों में एक लाचारी दिखी.... दर्द का असर... शरीर की लाचारी....या ईश्वर ही जाने क्या था ?
मैं भी किसी वजह से यहाँ हूंँ कुछ वक्त के लिए भूल गई ... एक मन हुआ बूढ़े बाबा का हाथ पकड़कर पूछूं क्या हुआ आपको... लेकिन हिम्मत न जुटा पाई। उनके साथ आए लोग कुछ आपस में बात करने लगे ... रिपोर्ट हाथ में लिए व्हील चेयर घुमाई और अस्पताल के गेट की तरफ चल पड़े.... गैलरी में दूर तक मेरी नज़रें उनका पीछा करती रही जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो गए।
ज़िंदगी में कितना कुछ किया जा सकता है अभी... जब तक की हाथ पैर सलामत हैं। छोटी - छोटी बातों पर हम हार मानने लग जाते हैं, हाय - तौबा मचाना शुरू हो जाते हैं.... असलियत में जब तक शरीर सही - सलामत है ...हमारे पास हार मानने की कोई वजह ही नहीं होनी चाहिए ...

दर्द देखा
बीमारी देखी
कंपकंपाते हाथ
आँखों में लाचारी देखी ...
देखे होंगे
ज़िंदगी के बसंत कितने
और उम्र की इस ढलती सांझ में
अब कैसी ये बेकरारी देखी ...?

© संवेदना