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स्वच्छता: हमारी जिम्मेदारी
बचपन से ही कुसुम मे स्वच्छता की आदते दिखाई देता था। वह एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती थी। उसका घर बहुत छोटा था। परन्तु कुसुम घर को हमेशा व्यवस्थित रखती थी।
अपने गुल्लक से पैसे निकालकर वह अपने मोहल्ले मे शौचालय निर्माण के लिए भी सहायता की थी।
कुसुम के इस आदत से शाला के सभी शिक्षक एवं बच्चे परिचित थे।शाला को स्वच्छ रखने के लिए वह हमेशा प्रयासरत रहती थी। शाला में सफाई कर्मचारी को कुसुम हमेशा सहायता करती थी। शाला के बगीचा, मैदान,कमरों में जहां भी कागज के टुकड़े पड़े मिलते वह तुरंत कूड़ा - दान में डाल देती थी। उसके इस आदत से कभी-कभी उसके साथी उसकी हंसी भी उड़ाते थे।
कुसुम को किसी से कोई शिकायत नहीं था। घर से शाला जाते एवं शाला से घर लौटते वक़्त कभी कहीं प्लास्टिक,पन्नी पड़ा मिलता तो कुसुम तुरन्त रास्ते के किनारे रखे कचरा- दा नीमें डाल देती थी। उसके इस तरह की कार्यो का शाला परिवार एवं नगर पंचायत के कुछ लोग भूरी -भूरी प्रशंसा करते थे। परन्तु उसकी कुछ सहेलियां उसे "कचरा कुमारी" नाम से बुलाने लगे। कुसुम इस बात से बहुत दुःखी थी पर किसी से कोई शिकायत नहीं की।
नगर पंचायत में गणतंत्र दिवस का आयोजन किया गया था। सभी विद्यालयों के बच्चों ने रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए।
बच्चों को पुरस्कार प्रदान किया गया। इसी अवसर पर एक विशेष पुरस्कार का घोषणा किया गया। सभी बच्चे उत्सुक थे। तभी अध्यक्ष महोदय द्वारा कुसुम का नाम पुकारा गया। अध्यक्ष महोदय द्वारा कुसुम के द्वारा सफाई में किया गया योगदान पूरे नगर पंचायत के सामने रखा गया।
कुसुम सभी के लिए एक प्रेरणा बनी। कुसुम ने पूरे विद्यालय परिवार को गौरवान्वित किया।आज वो सबके लिए एक प्रेरणा बनी।
रीता चटर्जी