नारीत्व और दायित्व
सृष्टि की अनुपम रचना वह सृजनकर्ता नारी है
शब्द जिसमें समाया उभय नर और नारी है।
कहते हैं नारी सरल नारी कोमल, सहनशील है
वक्त पड़े तो बन जाती है सब पर भारी है।
बचपन में पकड़ाए जाते गुड्डे गुडिया हाथों में
वहीं हाथ आगे बढ़ते परवरिश में छोटे भाई बहनों के।
मां संग झट काम निपटाती बीच पढ़ाई छोड़कर
पिता के कंधे से थैला उतारती सड़क पर दौड़ कर।
गुल्लक में वह बचत करती पाई पाई जोड़कर
बिना शिकायत तोड़ भी देती उदास पिता को देखकर।
अपनी इच्छा का गला...
शब्द जिसमें समाया उभय नर और नारी है।
कहते हैं नारी सरल नारी कोमल, सहनशील है
वक्त पड़े तो बन जाती है सब पर भारी है।
बचपन में पकड़ाए जाते गुड्डे गुडिया हाथों में
वहीं हाथ आगे बढ़ते परवरिश में छोटे भाई बहनों के।
मां संग झट काम निपटाती बीच पढ़ाई छोड़कर
पिता के कंधे से थैला उतारती सड़क पर दौड़ कर।
गुल्लक में वह बचत करती पाई पाई जोड़कर
बिना शिकायत तोड़ भी देती उदास पिता को देखकर।
अपनी इच्छा का गला...