...

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अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है।
के अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है।

अक्सर सवेरों से बचकर निकलता हूं
रात की तन्हाइयों में चुपके से, खुद से मिलता हूं
अंधेरों की दहलीज मुझे हरदम अपनाती है
अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है।

मैं ज्यादा बोलता नहीं था ये तो मालूम था तुम्हे
एक दूसरे से कहने की जरूरत शायद नही थी हमें
क्या था मन में तुम्हारे, मुझे रह रह कर ये बात सताती है
अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है।

आज भी अपने ख्यालों में तुमसे रूठ जाता हूं
तुम्हारी तस्वीर के सामने कभी टूट जाता हूं
फिर मां हाथ थाम के मुझको समझाती है
अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है।

हम दोस्त है तुमने कहा था, दोस्ती निभाने की उम्र अभी तो शुरू हुई थी
तुमको सुनाने को मेरे पास कहानियां कई थी
अब तो दिल की आह भी खामोशी में सिमट जाती है
अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है।