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चरित्रहीन
कितने आसान हैं मापदंड चरित्रहीन होने के, और बात जब हो स्त्री की तो फिर किसी मापदंड की शायद ज़रूरत भी नहीं होती। मैं समय हूँ... आज सोचा कि घोर कलयुग की गलियों के कुछ चक्कर लगा आऊं। मेरी सबसे पहली मंज़िल थी संस्कारी मोहल्ला। वहाँ रात के कुछ दो बजे शांता काकी डॉक्टर बाबू के यहाँ से अपने घर को जाती दिखाई दी... मैं समय हूँ मुझसे तो कुछ छुपा नहीं सो मैंने शांता काकी के हाथों में दवाई की शीशी देखी जो कि मरहम थी काकी के बीमार पोते के लिए।
सुबह हुई तो संस्कारी मोहल्ले के संस्कारी लोगों ने शांता काकी को चरित्रवान का सर्टिफ़िकेट थमा दिया क्योंकि किसी ने काकी के हाथ में दवाई की शीशी देखी ही नहीं। देखा तो बस उनका रात दो बजे डॉक्टर बाबू के घर से बाहर आना।
मैं समय हूँ मेरी अगली मंज़िल थी चरित्रवान गली। उस गली में रहती थी सुंदर, चंचल, सबसे हंस के बात करने वाली, जॉब करने वाली संगीता भाभी। अब क्योंकि भाभी पढ़ी लिखी मॉडर्न महिला थी उनके शौक भी कहीं कम नहीं थे। संगीता भाभी के कई मर्द दोस्त भी थे, उनके तो सोशल मीडिया पे अकाउंट्स भी थे जिन पे वो अक्सर चैटिंग किया करती थी। भाभी आए दिन अपनी खूबसूरत तस्वीरें भी पोस्ट किया करती थी। अब तो पक
तय था कि भाभी चरित्रहीन हैं। मैं समय हूं मुझसे कुछ नहीं छुपा... पता चला कि भाभी तो काम और घर के साथ, मॉडलिंग करती थी, गरीब, अनाथ बच्चों की पढ़ाई को सपोर्ट करने के लिए... मगर चरित्रवान गली के ठेकेदारों ने तो संगीता भाभी को चरित्रहीन का टाइटल दे दिया था।
मैं समय हूँ ,लेकिन मेरे पैर कांपने लगे हैं कलयूगी गलियारों में और आगे सफ़र करते हुए... चरित्रवान होना इतना सस्ता हो जाएगा कलयुग में ऐसा सोचा भी नहीं था। स्त्री चरित्र तो मानो सड़क पर पड़ी खाली बोतल के समान हो गया है जिसको जब मन आया ठोकर मार दी जाती है।
मैं समय हूं जा रहा हूं अनंत में विलीन होने ,क्योंकि कलयुगी मापदंड सिर्फ सहुलियत बनकर रह गए हैं।
#characterless #womansday #writcostory
© Haniya kaur