डायरी का एक पन्ना..
प्यारी डायरी निर्भया, प्रियंका, आसिफा, मनीषा, पता नही यह सफर कितने सदियोसे चलता रहा है और पता नही कब तक चलता रहेगा...? अब क्या बोलू और कहाँसे बोलना शुरू करु यही समज मैं नही आरहा है..! सच कहूं तो अब डरसा लगने लगा है इस समाज से लोगोकी सोच और मानसिकता से । डर सा लगने लगा है घरसे बाहर निकलने मैं । अब जब भी कोई सहेली जॉब के लिए या बहन पढ़ाई के लिए बाहर जाती है तब उसपर फक्र कम और उसकी फिक्र ज्यादा होती है। डर सा लगता है कि काम करते वक़्त या ऑटो से सफर करते वक़्त किसीकी नजर मुझपर ना पड़े। अब डर सा लगने लगा है आपने आसपास के सारेभावनाशून्य लोगो से...! डर सा लगने लगा है उन लोगोसे जीनके लिए मैं सिर्फ मांस की पोथी हु।
पता है डायरी कि जब कोई लड़की ऐसी बाते करे तो लोग क्या सलहा देते है..? यही कि लड़कियां कमजोर नही होती वो ऐसी पारिस्थितीका सामना कर सकती है। या फिर घरसे बाहर निकलते वक्त हरदम उन्हें आपने साथ लालमिर्च पावडर, पेपर्स स्प्रे, छोटा चाकू, कोई नुकीला अवजार रखना चाहिए । या फिर माता पिता को...