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मेघा की प्रतीक्षा
शादी को 15 साल हो गए,मेघा आज भी उसी जगह से, उसी दरवाजे से बाहर झाँक रही हैं, जिस दरवाजे से वो दहलीज़ पार करके अपने ससुराल आयी थी...

शादी से पहले मेघा बहुत चंचल स्वभाव की थी... उसकी रुचि हर उस काम में होती थी जो उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देता हो... घर का काम, खेलकूद, नृत्य, गायन हो या चाहे कोई भी सांस्कृतिक प्रतिस्पर्धा हो वह उसमे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थी... जिससे उसे अत्यंत आनंद की अनुभूति होती थी। मेघा की आँखे सिर्फ और सिर्फ आसमान में उडने के ही स्वप्न देखते रहती थी ..पर...इन स्वप्नों पर प्रतिबंध तो लगना ही था क्योंकि वो एक लड़की जो थी...
हमारा समाज लड़कियों को आज भी सिर्फ एक अच्छी बेटी,बहन,प्रेमिका,पत्नी,बहु व माँ, के रूप मे ही स्वीकार कर पाती हैं। कुछेक ही मेघा ऐसी होती हैं जो अपने सपनों को उडान दे पाती हैं और कुछेक के स्वप्न तो 'काश' की पोटली में सदा के लिए कैद होकर रह जाते हैं।

मेघा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, समय रहते उसकी शादी आकाश के साथ करा दी गई लेकिन उसकी आँखो ने सपने देखना नहीं छोड़ा...उसने सोचा शायद ससुराल की दहलीज़ ही वो सीमा हैं , जिसे पार करके ही वो कुछ कर पायेगी... आकाश के साथ नये जीवन की शुरुआत करेगी और वो ही उसकी पतंग का माँझी बनकर उसके सपनो को उड़ान देगा...परंतु ये क्या हुआ...? जिन सपनो का ताना बाना बुन कर वो ससुराल की दहलीज़ पार कर आयी थी वो सब उधड़ गये क्योंकि अब वो बेटी नहीं केवल बहु बन कर रह गई...जो अब बहु( अनेक) रिश्तो में बँध गई... जिम्मेदारियों की बेडियों मे जकड़ दी गई है... अब तो उसे इतनी आजादी भी नहीं हैं.......

कि-----वो सूखे वन मे मेघ की बारिश कर सके।

जहाँ फिर से हरियाली हो जाये...बंजर जीवन, नीरस मन लिए हुए वो अपना एक-एक दिन बीता रही हैं...हर तरफ सिर्फ एक ही शब्द हैं ....*बहु*... बहुओ को इतनी आजादी नहीं होती... तो फिर किसे होती हैं?? बेटी को भी नहीं होती क्योंकि उसे पराये घर जाना होता हैं... बेटी सोचती हैं जब अपने घर जाऊँगी तब कुछ बदलाव शायद मेरे जीवन में आयेगा...बहु सोचती हैं ,बेटी बनी रहती तो अच्छा था...
खैर मेघा आज भी सपनो के ताने-बाने बुनने में उलझी हुई हैं ...आज भी वह ये आशा लिए हुए हैं कि वो अपना जीवन व्यर्थ न होने दे...खिड़की से झाँकती हुई आज भी वो उन बादलो की तलाश में हैं जो कि एक दिन जरूर बरसेगे और उसकी उम्मीदों की बगिया को फिर से हरा-भरा कर देंगे...भरने दो उसे उडाऩ, फैला दो 'आकाश' अपनी बाँहो को जिससे कि मेघा की प्रतीक्षा पूर्ण हो 'मेघा' के मेघ बरस जाये और वो पंख लगाकर दूर गगन में उड़ जाये.......

© manjul sabdawali