11 Reads
ख़ामोशी की चादर शायद अब हमें जीने ना देगी,
घूट घूट कर जीने में रखा क्या है ये मरने भी ना देगी!
जिसे जो कहना है उसे ये समाज़ चुप रहने ना देगी,
हमने भी गीठ बाँध ली किसी के सामने झुकने ना देगी
जो ली है क़सम शायद अरमान को उमड़ने ना देगी,
जो मिली है, दर्द जुदाई इश्क़ उस से उभरने ना देगी!
Related Quotes
11 Likes
0
Comments
11 Likes
0
Comments