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// #भीड़_भरे_संसार_में //

इस विशाल भीड़ भरे संसार में,
एक अदद - अतल एकाकीपन सा;
चरु दिशा अंदर बाहर चीखता शोर;
तम बैठा मौन आस में कब हो भोर।

वन तरुवर सूखे चहुं दिशा हर ओर,
अतिरेक क्षुब्ध मन में मौन बैठे मोर;
चितवन अग्नि शिखा लपटें घनघोर,
अंतर्मन तम घटा छिपी सुंदर -भोर।

दीप माटी नहीं चाक करे अति शोर,
चिंता में चित श्मसान मरा मरा शोर;
प्रलय मची सारी दुनिया में हर ओर,
जग हाहाकार मचे जीवन नाहि ठोर।

पल -पल तू मत मसोस मन अपना,
नकारात्मक धरा अयन नहीं सजना;
ये पल बीत जाएंगे जैसे बुरा सपना,
नैन स्वप्न को अर्पित तन मन रखना।

अनमोल
रत्न हो तुम ना भाता तेरा बिखरना,
दर्पण कोभी भाए तेरा सज संवरना;
दुख गंगा तर्पण से नित आगे बढ़ना,
कमज़ोर पल पथ गलत मत चढ़ना।

तू शक्ति सबल अबला ना समझना,
चित्त चित ताक़त इसपे ध्यान धरना;
जीवन में कभी कमज़ोर ना पड़ना,
सीना सर्वथा गर्व से तानकर चलना।

तृण माटी ढ़ेर इस पर मत अकड़ना,
जीवन सच्चा साथी पढ़ना-लिखना;
क्षण भर को मन पे बोझ ना रखना,
नित्य दिल की बातें खुलकर कहना।