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// #सोता_जग_कौन_जगाये //

दिन ढल गया तो क्या सुहानी- शाम तो आयी,
ढलती शाम गये पंछी तरु - नीड़ लौटा ले आयी;
नभ तम छाया तो चारु - चंद्र चाँदनी चली आई,
तारों की तरुवर चंचल लड़ियां नभ द्वार सजाई।

चिरनिंद्रा वन- उपवन निर्मल पवन तन सहलाए,
चंद्र चाँदनी आंगन- आंगन प्रेम- अमृत बरसाए;
चारु- चंद्र चंचल किरणें चितवन- चैतन्य चेताए,
नयन सागर प्रेम स्नेह शीतल जलधारा छलकाए।

नित पथ धूप- छांव जीवन मधुर मोड़ मुडा जाये,
दिशा बदले ऋतु बदले हर क्षण जग बदला जाये;
भाषा बदले आभा बदले नित आशा बदली जाये,
नभ सूर्य -चंद्र- तारे जागे सोता जग कौन जगाये।

किसी की नज़रे बदली किसी का बदला नजरिया,
वो क्या बदले जीवन का बदल गया सारा नज़ारा;
नज़रिया बदलिए जनाब मत बदलना कभी नज़र,
बदल जाती है रुह उसके बदलने से उसकी नज़र।