...

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पिता का होना
पिता का होना, वो सुनहरा सपना था,
जिसके बिना जीना, वास्तव में अधूरा था।

छोटी सी उम्र में खो दिया मैंने उसे,
रूह तक छू गया वो, बिना कहे अलविदा कहकर।

हर रोज़ बस यादों में जी रही हूँ मैं,
उस प्यार भरे हाथों की गर्माहट में खो रही हूँ मैं।

पिता की ममता, उसकी छाँह, उसकी हंसी,
अब बस मेरी आँखों में है उसकी यादों की विस्मृति।

उसके बिना जीना, सीख रही हूँ मैं,
पर वो ख्वाब, वो आशीर्वाद, अभी भी मेरे दिल में बसा है।

मेरे पिता, मेरी पहचान, मेरा सहारा,
तेरे बिना अधूरी है ये ज़िंदगी, ये सारा।

काश एक बार फिर मिल सकूं तुझसे,
पिता का होना, बस ये एक ख्वाब नहीं, ये हकीकत होना चाहिए।
© Simrans