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इश्क़ और जुनून
इश्क़ और जुनून की कोई इंतेहा नहीं होती
हर जगह हैं ख़ारज़ार, मगर परवाह नहीं होती
कर जाएं पार आग के दरिया भी खुशी खुशी
अगर इश्क़ जुनून की हद तक पहुँच जाए
इश्क़ को परवान चढ़ते कहाँ कब देर लगती है
गर पाक़ हो इश्क़, क़ायनात भी साथ चलती है
रहबर हो जब ख़ुदा तो मुश्किलों की परवाह किसे
हर शूल भी बदल कर पांव में कली-सी लगती है
इश्क़ में गर जुनून ना हो तो फ़िर इश्क़ कैसा
इश्क़ महबूब से ऐसा करो, इश्क़ ख़ुदा से हो जैसा
दग़ाबाज़ी दिलों के रिश्ते में कभी माफ़ नहीं करता
हो जाए जो कभी मोहब्बत, तो इंकार नहीं करना
इश्क़ करो ज़िंदगी में तो जुनून की हद तक निभाओ
जो देखो किसी की तरफ़, सूरत यार की ही पाओ
सब पर कर इतना रहम जो कर सके तू, ऐ मेरे ख़ुदा
मत दे जुदाई तोहफ़े में, दे सबको सबका यार, ऐ ख़ुदा
© सुधा सिंह 💐💐
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