...

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महाकाल की आवाज़ बनें
शादियाँ लूट का न अवसर बने,
अपेक्षित है आप से कि सज्जन बने।
श्रद्धा विश्वास, स्नेह समर्पित करें,
अपेक्षित है आप से कि सुसंस्कृत बने॥

विष गरल को स्वयं ही धारण करें,
अपेक्षित है आप से कि शिव गंगा बने।
नूतन रिश्तों में सदैव यह भरें प्रेरणा,
अपेक्षित है आप से कि अब देवता बने॥

शान शौक़त में धन यूँ व्यर्थ ना करें,
अपेक्षित है आप से कि विवेकवान बनें।
जीवन देवता कि उपासना हम करें,
अपेक्षित है आप से कि सरल अब बनें॥

दहेज में धन नहीं केवल सम्मान लें,
अपेक्षित है आप से कि संस्कारवान बनें।
विरह के किसी का न अब कारण बनें,
अपेक्षित है आप महाकाल की आवाज़ बनें॥

© Praveen Yadav @SoulWhispers