...

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सिर्फ़ तुम
ख़्वाब चुन-चुनकर चुराये थे एक दिन वक़्त से,
एक-एक ख़्वाब को तारों सा टूटता देखती हूँ मैं!

पल-पल साथ रहने का जो अहसास माँगा था ,
हर पल तुम्हें याद करते बिताती हूँ मैं!

हर पल में कोई था तो बस तुम थे ,
आज भी रातों को जागकर ख़्वाब सुलाती हूँ मैं !

सुकून -ए-ज़िन्दगी में एक तेरा ही ख़्वाब रहा ,
उसी ख़्वाब की ताबीर में रोज़ जीती हूँ मैं!

वो हर पल दरक गया नींव के पत्थर जैसा ,
दरक-ए-दीवार में आज भी ख़्वाब तलाशती हूँ मैं!
© गुलमोहर