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कान्हा

भय से जिस के पापी कंस सोया नहीं कई रातों से
जन्म लिया उसने मध्यरात्रि कारागार में लौह सलाखों के पीछे
सात संतानों की मृत्यु से संतप्त बहन देवकी और बहनोई वासुदेव की व्यथा की चीखें ना कंस के कान पड़ी
कारागार से पहुंचकर ब्रज नंद और यशोदा के आंगन में पल बढ़कर अंत में मथुरा मृत्यु कंस के समक्ष आन खड़ी
कमलनयन चंचल चितवन से सुशोभित कान्हा के रूप ने सबके मनों को लुभाया
नटखट गोपाल ने मटकियां फोड़ गोपियों की माखन चुरा चुराकर खाया
गोपी ग्वाल गौऔ तथा समस्त बृजवासियों के तन मन पर प्रेम गोविंद का ही छाया
रासलीला करे माधव गोपियों संग बिन रास गोपियों को एक क्षण भी रास ना आया
रूकवाकर प्रथा इंद्र पूजन की गोवर्धन को पूजकर किया इंद्र का मान भंग
मुरलीधर ने ऊंगली पर गोवर्धन को उठाकर किया बृजवासियों को दंग
यूं तो बृज ,मथुरा, द्वारिका की हर गोपी ग्वालिन चाहे मुरारी को परंतु श्रीमती किशोरी जी का प्रेम त्याग अति अनंत सबों से पहले आज भी कृष्ण से पहले नाम लियो जाए राधारानी को
सूना सा हो गया फिर एक दिन गोलोक और वृंदावन में भी उदासी छाई
अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना करने को श्रीकृष्ण ने समुद्र में द्वारिका नगरी बसाई
रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती ,सत्या, भद्रा, लक्ष्मणा, कालिंदी,मित्रविंदा तथा सोलाह हजार रानियों ने द्वारिकाधीश को अर्धांग रूप में पाया परंतु आत्मिक रूप में राधा में ही कृष्ण समाया
फ़िर एक दिन द्वार पर द्वारिकाधीश के मित्र सुदामा पधारे
चरण आंसुओं से श्याम ने पखारे
मित्र सुदामा की दी हुई भेंट मुट्ठी भर चावल को श्याम ने बड़े प्रेम से खाया
शुद्ध मैत्रीभाव से जग को परिचित कराया
द्रौपदी के स्नेह और विश्वास को उचित ठहराया
भरी सभा में अधर्म होने बचाया
कुरूक्षेत्र में गीता के उपदेश की अर्जुन को दी शिक्षा
उत्तरा के गर्भ में की परीक्षीत् की रक्षा
कहा ये कि जब जब होगा अधर्म भारत भूमि पर अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना के लिए मैं आऊंगा त्रेता में राम,द्वापर में श्याम तथा कलयुग में कल्कि कहलाऊंगा
© Hema j