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श्याम सुदामा - ३ : मिल रहा हूं
पीड़ गंभीर नैनों में नीर लिए, मैं हरी को देख पिघल रहा हूं,
दरिद्र मित्र ब्राह्मण चरित्र में, द्वारिका नृप से मिल रहा हूं।
दीनपद में कंटक भरे हैं, हरि हृदय में कनक उभरे हैं,
देख वर्षों बाद परम मित्र को, जी भर के गले मैं मिल रहा हूं।
दरिद्र मित्र ब्राह्मण चरित्र में, द्वारिका नृप से मिल रहा हूं।
अश्रु से अपने पद धुलाते हैं, दुग्ध चंदन से नहलाते हैं,
ऐसे श्रीमहल में मुट्ठीभर, तंदुल छिपाए फिर रहा हूं।
दरिद्र मित्र ब्राह्मण चरित्र में, द्वारिका नृप से मिल रहा हूं।
भेंट देख देवेश मुस्काए, देने लगे त्रिलोक्य संपदाएं,
प्रभु के मुख मंडल पर तेज देख, मै हरि को हो हर्षित रहा हूं।
दरिद्र मित्र ब्राह्मण चरित्र में, द्वारिका नृप से मिल रहा हूं।
© Utkarsh Ahuja
दरिद्र मित्र ब्राह्मण चरित्र में, द्वारिका नृप से मिल रहा हूं।
दीनपद में कंटक भरे हैं, हरि हृदय में कनक उभरे हैं,
देख वर्षों बाद परम मित्र को, जी भर के गले मैं मिल रहा हूं।
दरिद्र मित्र ब्राह्मण चरित्र में, द्वारिका नृप से मिल रहा हूं।
अश्रु से अपने पद धुलाते हैं, दुग्ध चंदन से नहलाते हैं,
ऐसे श्रीमहल में मुट्ठीभर, तंदुल छिपाए फिर रहा हूं।
दरिद्र मित्र ब्राह्मण चरित्र में, द्वारिका नृप से मिल रहा हूं।
भेंट देख देवेश मुस्काए, देने लगे त्रिलोक्य संपदाएं,
प्रभु के मुख मंडल पर तेज देख, मै हरि को हो हर्षित रहा हूं।
दरिद्र मित्र ब्राह्मण चरित्र में, द्वारिका नृप से मिल रहा हूं।
© Utkarsh Ahuja
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