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झूठ की मजबूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
पेट पर चल रही भूख की छुरी है
अब तो आधी रोटी भी पूरी है
पैसा नहीं दिल भी जरूरी है
गरीब होने में भी इक अमीरी है
ख्वाहिशों के महल है दिल में
मगर अब तक नींव अधूरी है
पहाड़ों पर एक अलग सुकून तारी है
'शिखा' पर बर्फ गिरना अब भी जारी है
© Shikha_
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
पेट पर चल रही भूख की छुरी है
अब तो आधी रोटी भी पूरी है
पैसा नहीं दिल भी जरूरी है
गरीब होने में भी इक अमीरी है
ख्वाहिशों के महल है दिल में
मगर अब तक नींव अधूरी है
पहाड़ों पर एक अलग सुकून तारी है
'शिखा' पर बर्फ गिरना अब भी जारी है
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