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वसंत शोभा वर्णन
शीतल समीर का सर चुंबन आलिंगन अलिकुल का आली
गुल गंधी गूँज गंवई कंगना हरषित हरिता विटपोंवाली
कर स्निग्ध सुबह पर द्युति पंखी उन्नत रतकाम हंँसी खाली
मद शीत मथित तन उष्ममना प्रिय आप्त हुए गौरवशाली
ऐसे क्षण में शुचि भावुक हो मन रंजित अस्तु करें अपना
'शाश्वत' शोभा का भान करें प्रिय रस का पान करें अंगना


© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत'