...

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मनमोहिनी
कौन हूं तुम कहां से आई हो
मेरे अंतर्मन पर क्यों छाई हो
बातों से अपनी मन मोह लेती हो
मनमोहिनि बनकर मेरी जिंदगी में क्यों आई हो
इतनी सरल हो इतनी सहज हो
क्यों मेरी और खिंची चली आई हो
शब्दों के बाणों से मेरा दिल भेदती आई हो
अप्सरा हो कोई आसमां की
क्यों जमीं पर आई हो
ख्वाबों में चली आती हो रोज
क्यों मेरे दिल o दिमाग पर छाई हो
कह दो जो कहना चाहती हो
क्यों इतना तड़पाती हो
ओ मनमोहनी क्या तुम
मेरे संग रास रचाने आई हो