...

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दिल खुद से रूठ सा जाता है
अब तेरे नाम के तीनों अक्षर,
यूं दिल मे उतर गए।
कोई एक भी सुनता हूं तो,
कुछ अंदर टूट सा जाता है।

अक्सर दिल करता है तुमको,
अब दिल से निकाल दूं।
दिल की सुनते ही दिल मुझसे,
कुछ दिन रूठ सा जाता है।

इस दुनिया की भीड़ में हर दिन,
एक ही चीज़ गंवाता हूं।
अब तेरी याद का कोई सिक्का,
कहीं छूट सा जाता है।

कभी कहीं जो जाना हो तो,
जिस्म यहीं रख जाता हूं।
अब तेरी यादों का बस्ता ही,
काफ़ी भारी हो जाता है।

मेरे शहर का कोई मुसाफ़िर,
तेरी गली से गुजरे तो,
छगन मजे में हैं यह कह कर,
तुमको लूट सा जाता है।

© छगन सिंह जेरठी
© छगन सिंह जेरठी