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हम चाहते हैं जिनको वो पास नहीं रहते ।
हम चाहते हैं जिनको वो पास नहीं रहते ।
दाइम' किसी की ख़ातिर हम ख़ास नहीं रहते।।मतला

अब लोग बदलने में याँ वक़्त लगाते नइँ
ख़ुद-ग़र्ज़ ज़माने में इख़्लास नहीं रहते

जब प्राण पखेरू चल पड़ते हैं गगन की ओर
तब साँस नहीं रहती, एहसास नहीं रहते

मुफ़लिस की गली से नेताओं को गुज़ारो,
जो कहते है कि कूचे में अब दास नहीं रहते

मामूली से पत्थर भी होते हैं याँ चमकीले
सुन खान में सारे ही अलमास नहीं रहते

तस्वीर हमारी अच्छी आती मगर अफ़सोस
तब हँसते हैं जब कुर्बत' 'अक्कास' नहीं रहते

हर काली निशा के पीछे है छुपी उजली भोर
दुख कितने भी हों पर बारा-मास नहीं रहते
© सोनी