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सुलग गई चिलम
अक्षय तृतीया के दिवस,बैठे गजानन बालकों को लेकर।
कहा लाओ चिलम तम्बाखू भर,अग्नि न थी किसीं घर।
पितृ पूजा में थे नर नारी,किसी ने चूल्हे में आग न उतारी।
एक बालक ने किया विचार,अग्नि होगी सुनार के घर।
झिड़क उनसे कहा सुनार,न देता मैं अग्नि छोड़ो मेरा द्वार।
निराश बालकों ने फिर आकर,घटना सुनाई सविस्तार।
कहा फिर बंटक से गजानन ने,रखो कड़ी कर चिलम सवार।
आश्चर्य से सब देखने लगे,कैसे सुलगती चिलम इस बार।
हुई प्रकट फिर चिंगारी,चिलम पर हुई आग की सवारी।
सदगुरू की लीला न्यारी,जय गजानन घोष करते सब नर।
उस सुनार ने पितृ भोज कराया,अन्न में कीड़े उसने पाया।
पितारों का श्राद्ध विफल कराया,कृत्य पर पाछताया।
आया शरणागत सुनार,पश्चयताप कर किया प्रणाम।
क्रोध में कहा गजानन ने,क्यों करते हमारा दुष्प्रचार सुनार,
खोलो ढक्कन फिर एक बार,फिर सभी ने देखा चमत्कार।
भोजन मे थी स्वादिष्ट बयार,फिर जय गजानन श्री गजानन।
संजीव बल्लाल ७/३/२०२४© BALLAL S