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🌺पर्दे 🌺
धूप, धूल और मौसमों
को बस धकेल देते हैं,
घर के न जाने कितने
गहरे राज़ समेट लेते हैं,
घरों की न जाने कितनी
दुख-पीड़ा सहेज लेते हैं,
मान इज़्ज़त के भी यही
होते हैं सच में निगहबान,
ख़ुद में ज़माने भर की ग़र्द,
ग़लीज़ निगाहें समेट लेते हैं,
टंगे रहते हैं जो खामोशी से,
सभी खिड़कियों दरवाज़ों पर,
कमाल हैं वो पर्दे, बिना रिश्ते
भी खूब रिश्ते निभा देते हैं!
🌺🌺🌺🌺
Vijay Kumar
© Truly Chambyal
को बस धकेल देते हैं,
घर के न जाने कितने
गहरे राज़ समेट लेते हैं,
घरों की न जाने कितनी
दुख-पीड़ा सहेज लेते हैं,
मान इज़्ज़त के भी यही
होते हैं सच में निगहबान,
ख़ुद में ज़माने भर की ग़र्द,
ग़लीज़ निगाहें समेट लेते हैं,
टंगे रहते हैं जो खामोशी से,
सभी खिड़कियों दरवाज़ों पर,
कमाल हैं वो पर्दे, बिना रिश्ते
भी खूब रिश्ते निभा देते हैं!
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