...

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तुम्हें पता है?
तुम्हें पता है,तुम क्या हो?
तुम्हारे खुद के लिए नहीं..'मेरे लिए'...
ये 'मेरे लिए' पढ़ते ही जो अभी तुमने भीतर एक अनजानी-सी खुशी महसूस की है न....
मेरे लिए वो 'ख़ुशी' हो तुम....
'क्या हो' पढ़कर ये जो 'क्या हूँ' जानने की ज़रा-सी जल्दबाज़ी हुई है न. मेरे लिए वो 'जल्दबाज़ी' हो तुम.
क्यों हो तुम? ये ख़त्म होते ही अगली लाइन में ये जो 'क्यों हूँ' का जवाब जानने की बेचैनी हुई है न.
मेरे लिए वो 'बेचैनी' हो तुम....
कब तक रहोगी तुम? ये जो 'कब तक' पढ़कर तुम्हारा दिल एक सेकंड के लिए धक्-सा हुआ और ज़रा-सा डर लगा न....
मेरे लिए वो 'धक् वाला ज़रा-सा डर' हो तुम....
ख़ुशी,जल्दबाज़ी,बेचैनी और डर के बीच मेरे जिए हुए और जिए जा रहे हर इक पल का हिस्सा हो तुम...
🖤
© The Introvert Guy...!!