...

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सब खत्म हो गया
ठहराव है सन्नाटा है
मेरी रूह डरने लगी है,
धड़कनें तेज हो रहीं
मेरी बेचैनी बढ़ने लगी है,
आँखें रो रहीं
खुशी खो रहीं
भरे अंधकार में सो रहीं,
विनाश दिख रहा
यम चीख रहा
ये काल घड़ी का बीत रहा,
अब विजय नहीं हार है
जीवन का संहार है
सब हाथ से छूट रहा
यही मृत्यु की पुकार है,
मन दुर्बल हो रहा
तन शक्ति खो रहा
मैं लाश के समान हूँ
साहस मेरा रो रहा,
हाँ ये पराजय स्वीकार है
पर विजय से भी प्यार है
मैं दुविधा में पड़ रहा
मेरे इस जीवन को धिक्कार है,
















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