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!...डूब गया जग सारा...!
अल्लाह अल्लाह करते करते रात तो मैने काटी है
सुब्ह को अज़ान हुई फिर मुल्ला दिन में जागे है

दिन में पंडित राग सुनाए, काफिर बन बैठा ये दिल
मैं ता काफिर इश्क में होया, रब तो मुझ में बाकी है

कश्ती टूटी डूबी नय्या और डूब गया जग सारा ये
रिंदी सारे मयखाने में है - दहकान सारे प्यासे है

मंदिर मस्जिद खूब किया, दिल में पाप भी बाकी है
दिन भर आग लगा ली जग में कैसे ये परवाने है

इज्जत आंसू अव्वल आला सारा खेल तो इसका है
कोयल कव्वा शेर या कुत्ते, गद्दी के सब दीवाने है

दहकान – किसान और गरीब जनता
रिंद – शराबी यानि नेता

-–12114