...

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एक ख़त के जबाब में...
प्रिय, तुम जानना चाहती हो
की, अब मैं वहाँ क्यूँ नहीं आता हूँ

पहले की तरह...

क्यूँ नहीं हँसता हूँ, खेलता हूं
नाचता हूँ, गाता हूँ
क्यूँ नहीं प्रेम की वो कविताएँ
सुनाता हूँ
तुम्हारे हाथों को अपने
हाथों में लेकर
उल्टी - सीधी रेखाएं देखकर
अब क्यूँ नहीं तुम्हारा
भविष्य बताता हूँ

पहले की तरह...

तुमने जानना चाहा है
की अब मैं
क्यूँ नहीं बताता आकर
की तुम्हारा गाँव
कितना सुन्दर है
फ़ूलों की खुशबु
ठंडी हवाएं
सूर्य की किरणें
नदी की लहरें
दूर तक, फैले खेत
औऱ कैसा मंजर है
चाँद के खिलने पर
अब मैं कविता
क्यूँ नहीं कहता
वहाँ आ कर

पहले की तरह...

दरअसल, अब मैं तुमसे
प्यार करने लगा हूँ
औऱ, कहीं बहक ना जाऊँ
तुम्हारा सान्निध्य पाकर
इसीलिए
वहां आने से डरने लगा हूँ
क्या तुम चाहती हो?
की.. मैं फिर से हँसुं- खेलू
नाचूं - गाऊँ
तो अब लिख दो ना जबाब
इस ख़त का
की मैं, वहीं आ जाऊँ

पहले की तरह...



© Rajnish Ranjan