...

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अनजान रिश्तें
कभी-कभी कुछ अनजान रिश्तें "
हमारे ऐसे भी बन जाते है,
जो बेवजह,,,,,बस यूँ ही "
दिल से जुड़ जाते है,,,,,,,॥

वैसे कहने को कुछ खास "
तो उन रिश्तों में नही होता,
उसके बाद भी ना जाने कैसे"
वही रिश्तें अपने हो जाते है,,,,,॥

खून के रिश्तों से भी ज्यादा "
कभी-कभी वह अनजान रिश्तें,
मुसीबत में साथ निभाते है "
अपने जब कभी साथ छोड़ जाते है,,,,॥

ऐसा तो जरूरी नही होता की "
अपने ही अपनों का साथ निभाते है,
जिंदगी तो वह लोग भी हंसकर बिताते हैं "
जो इस संसार में अकेले रह जाते हैं,,,,,॥

एक माता-पिता ही तो है "
जो मरते दम तक रिश्तों को बचाते है,
माता-पिता के जाने के बाद तो "
भाई-बहन भी पराए हो जाते है,,,,,,॥

जो रिश्तें छल-कपट, दुःख-दर्द "
इर्ष्या, स्वार्थ, बदले की भावना से,
कहीं ज्यादा ऊपर उठ जाते है "
वही रिश्तें दिल से प्यार निभाते है,,,,॥

उन रिश्तों का कुछ नाम तो नही होता "
लकिन फिर भी रूह में समा जाते है,
क्योंकि हो,,,,ना,,,,हो कभी-कभी "
अनजान रिश्तें भी सच्चे कहलाते है,,,,,,॥


© Himanshu Singh