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न असत्य न आडंबर
कारंजा का लक्ष्मण घुडे था,यजुर्वेदी ब्राह्मण सम्पन्न।
शरीर हुआ उसका कमजोर,उदर में व्याधि हुई उत्पन्न।
वैद्यकीय उपचार होने पर भी,उसकी व्याधि दूर न हुई।
समर्थ की कीर्ति सुनकर उनके दर्शन की व्यवस्था हुई।
कमजोर अवस्था देख उसे,अन्य लोगो ने शेगांव लाये।
कमजोर हुए लक्ष्मण की,पत्नी ने फिर आँचल फैलाये।
कीजिये प्रभु सुहाग का रक्षण,मैं पुत्री सम हूँ आस लगाये।
आम खाते हुए महाराज ने,देकर कहा पति को खिलाओ।
कारंजा आकर पत्नी ने लक्ष्मण को आम खिलाया।
सविस्तार महाराज की कृपा को सबको बताया।
वैद् कहते आम होता कुपथ्य क्यों कर इसे खिलाया।
अर्धांगी के खाने से भी,इसकी व्याधि दूर हो जाती।
फिर लक्षमण का कड़ा पेट हुआ,नरम दूर हुई सब व्याधि।
स्वस्थ लक्ष्मण फिर शेगांव आकर किया महाराज का वंदन
समर्थ से कारंजा साथ घर आने का किया निवेदन।
यथाविधि पूजन कर दक्षिणा स्वरूप कहा सर्वस्व अर्पण।
फिर थाली में कुछ रुपये महाराज देकर किया उन्हें नमन।
महाराज बोले सर्वस्व किया है अर्पण, कहाँ से आया धन।
ऐसा दिखावा न करो ताले खोल संपत्ति का करो वितरण।
यह सुन लक्ष्मण हो गया मौन,देने का था न उसका मन।
जाकर खोली तिजोरी,डर कर मन ही मन।
महाराज तो है सर्वज्ञ,पढ़ लिया उसका मन।
बिना भोजन किये छोड़ दिया,उसका घर आंगन।
मैं तो दुगुना लौटने आया था,अन्न धन का मुझे क्या प्रयोजन।
भोगना होगा परिणा,तुम्हे कह कर असत्य वचन।
महाराज का कथन सत्य हुआ भिक्षा की ली उसने शरण।
परमार्थ में असत्य,आडंबर का होता नही स्थान।
क्या चमकीला पत्थर ले सकता मणि का स्थान।
संजीव बल्लाल १५/३/२०२४© BALLAL S