...

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दुविधा
कल तुझे खोकर भी मैं दुखी न था,
तुझे आज पाकर भी मैं खुश नही।
यह कैसी अवस्था है जीवन की मेरी,
न दुख में मैं तेरा,न सुख में तू मेरी।
दूर थे अनजान थे एक दूसरे की भावनाओं से,
करीब होकर भी आज दूर हम संवेदनाओं से।
इस संसार के बंधनों से हम बंधे जा रहे,
एकदूसरे को साथ हम न दे पा रहे।
दिल चाहता है सब कुछ कह दे,
न जाने क्यूँ हम न कह पा रहे।
यह दुरियाँ भी अब हमे तड़पा रही है,
मिलने की कोई वजह भी तो न आ रही है।
संजीव बल्लाल २७/३/२०२४© BALLAL S