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मजबूरी
कितनी मेहनत करी थी हमने सेवा
सोचा था मिल जाएगा हमको भी मेवा
किस मिट्टी बने हुए हो तुम,
कितना हमसे छीन चुके हो तुम
मांगी थी मदद उनसे साथ देने की
छीन ली उसने सारी खुशी मेरे की
न घर है न अपना न बाहर ही सकते हैं
कितनी मजबूर कर जिंदगी तुमने।
सोचा था मिल जाएगा हमको भी मेवा
किस मिट्टी बने हुए हो तुम,
कितना हमसे छीन चुके हो तुम
मांगी थी मदद उनसे साथ देने की
छीन ली उसने सारी खुशी मेरे की
न घर है न अपना न बाहर ही सकते हैं
कितनी मजबूर कर जिंदगी तुमने।
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