...

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ये रिश्ते

हमने
देखा है अपनों को मुंह फेरते हुए,
तभी अब
अपनापन ढूंढने निकलते नहीं है
लावारिसों की तरह।

यहां पे दिल नहीं जिस्मों की लगी भागम भाग सी है
आज फिर देखा किसी गैर को
अजनबी पे सीना रखते हुए,
हमने यूं देखा है रिश्तों को रोज़ बनते हुए
तभी निभाते नहीं है रिश्ता बेगानो की तरह।
© seeker loveneet