...

9 views

अँधेरा मेरे अंदर था
अँधेरा मेरे अंदर था, दिल की गहराइयों में,
रोशनी की तलाश में, थकी रातें बिताती थीं।

खोजती रही मैं राहों में, चाँदनी की किरणों को,
एक उम्मीद की किरण, मेरी दिल को जगाती थी।

हर रोज़ लगता था, कोई मेरा साथ छोड़ गया है,
पर फिर भी मैं हर दर्वाज़े पर खड़ी रहती थी।

जब आया सवेरा, तो मेरी आँखों में चमक आई,
अँधेरे का हार तोड़ कर, नयी उम्मीदें जगाती थी।

जीने की राह पर, अब मैं चलना सीख गई हूँ,
अँधेरा मेरे अंदर था, पर आज उसे हरा दिया है।

आँधी के बाद ही तो, आसमान में रंग होते हैं,
मैंने अपने अँधेरे को, खुद से लड़ा लिया है।
© Simrans