...

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मानव है हम
मानव है हम
मानव है हम
लेकिन
मानवता को भूलकर
प्रकृति से विमुख होकर
विकृति ओर बढ़ रहा है
कोई कामवासना में
इतना डूबा हुआ है की
पशु से ही हीन
दुष्कर्म में फंसा है
तो
कोई धन-दौलत लालसा में
भ्रमित होकर
अपने आप को ही भूलकर
पागल बना हुआ है
तो
कोई मान-सम्मान
पद-प्रतिष्ठा, पुरस्कार
के लिए
अपनी सारी जिंदगी
घूमाते हुए खपा रहा है
सबकुछ तो
यह विपर्यास है या
विडंबना ?
मानव है हम
मानव है हम
लेकिन
मानवता को भूलकर
कैसी कैसी जिंदगी
जी रहे है
अनमोल मानव जन्म
युहीं व्यर्थ गंवा रहे हैं
जाग मानव जाग
अभी भी समय है
सार्थक जीवन
जीने का प्रयास करें
मानव है हम
मानव है हम
मानव से दानव नहीं
बल्कि
मानव से माधव बनकर
सार्थक जीवन जीना है
© आत्मेश्वर