...

19 views

भीड़ इतनी मगर अपना कोई नहीं........
ईद्-गिर्द की ध्वनि
हताश मन को कर रहीं
भीड़ इतनी देख दुनिया की
परछाईं भी मेरी डर रही यहाँ देख,चाहे वहाँ देख
चाहे तु हर जगह देख सब जगह हैं वहीँ लोग
जो आज यहाँ तो वहाँ किसी रोज
एक सा चेहरा मुझे दिखता हर जगह हैं लोग जिस कदर बढ़ रहें
वसता हर दिन इक नया शहर हैं
शहर वह जिसमें कोई अपना नहिं
अपना सा कोई दिखता नहिं
अपनेपन का चोला ओढ़े
दिखते यहां पर बहुत लोग हैं
कोई नहिं मेरा यहाँ जितने देखे सभी ढोंग हैं
नफरत सी होंने लगी हैं मुझे इस संसार से
कोई नहिं है साथ वाकई
यहा सब अपने काम से हैं