...

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बदलती रुत, बदलता समाँ
# दिल में ज़ख्म गहरे लगे हैं
मुनाफिक भी खुशामद करने लगे हैं
बेनमाज़ी थे यार मेरे, पर अब
मेरे सुकूं की दुआ सारे करने लगे हैं
बदलेगा समां जरूर ही इक दिन
खजूर के दरख्त भी छांव करने लगे हैं
तेरे शहर की गलियों में बदनाम है हम
अब तो लोग सरेआम गलत बात करने लगे हैं
दिल काँच की ज्यूं बिखरेगा उनका भी
जो 'शिखा' के रकीब से मुलाकात करने लगे हैं





© Shikha_