...

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तू कहता है .. पागल सी हूँ मैं!
बड़ी हिफाज़त से रखा है
हमने यादों को !
मुरझाने न दिया...
हर शाम महकता है
मेरा कमरा उसकी ख़ुशबू से,
मीठी सी है ... कुछ नमकीन सी !
यह ख़्वाहिशें भी न
बड़ी चंचल होती है .. तितली सी !
गुदगुदाती है मन को,
और हर शाम
तेरे बग़ैर, मैं तेरे साथ होती हूँ !
ख़ामोश ...पर न जाने
कितनी बातें करती हूँ !
हाँ ... ऐसी ही हूँ मैं !
तू कहता है..."पागल" सी हूँ मैं !