पेड़ की बातें
चिलचिलाती धूप में
लेकर कागज़ कलम बैठा था
कुछ लिखने एक पेड़ की ठंडी छांव में
झुक कर पेड़ ने भी कह दिया आखिर
याद आई ना नई कविता बैठकर मेरी छांव में
जब जाती बिजली तुम्हारे घरों में
अक्सर मेरी याद आती है
या तब जब सुबह - सुबह टहलने की बारी आती है
(हां , वहीं जिसे तुम माॅर्निंग वाॅक कहते हो)
वरना कौन पूछता है
हमें इन पक्षियों के अलावा
हम तो है ही जीव-जंतुओ का सहारा
सुना है अब तो ऑक्सीजन भी
सिलेंडर में भर के आ जाती है
पर भुलना मत हमारे अलावा तो
ऑक्सीजन भी डगमगा जाती है
छोडकर स्वार्थीपन सोचना
कभी बैठकर मेरी छांव में
क्या कभी बिन हवा के
बारिश आती है तेरे गांव में
अगर हो गई तेरी कविता पूरी
तो क्षण भर सोजा मेरी छांव में ।
© Pradeep Raj Ucheniya
(आप सभी को विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
प्रकृति को हमारी सनातन संस्कृति में मां का दर्जा दिया गया है और यह हमारे लिए सदैव पूजनीय है।)
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