कलम भी रो पड़ती होगी
क्या समझ रखा है खिलौना ?
जिसे मन आया बेचा खरीदा और फेंका ,
क्या है वो कोई गहना ?
जब चाहे पहना
और एक कोने में रख दिया ,
मानते हो अर्धशरीर अपना
तो क्यों छोड़ते हो उन्हें अकेला ,
क़लम भी रो पड़ती होगी
जब उसकी खबर
कि वह कचरे में पड़ी मिली लिखती होगी
या तब जब जानवरों ने उसे नोच दिया
यह खबर लिखती होगी ,
कागज भी रो पड़ता होगा
की कब ये मानव समझेगा
ये सोचकर वो भी पानी में तैरता होगा।
© Pradeep Raj Ucheniya
जिसे मन आया बेचा खरीदा और फेंका ,
क्या है वो कोई गहना ?
जब चाहे पहना
और एक कोने में रख दिया ,
मानते हो अर्धशरीर अपना
तो क्यों छोड़ते हो उन्हें अकेला ,
क़लम भी रो पड़ती होगी
जब उसकी खबर
कि वह कचरे में पड़ी मिली लिखती होगी
या तब जब जानवरों ने उसे नोच दिया
यह खबर लिखती होगी ,
कागज भी रो पड़ता होगा
की कब ये मानव समझेगा
ये सोचकर वो भी पानी में तैरता होगा।
© Pradeep Raj Ucheniya