...

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इसलिए जलता हूं
जाने कौन सा ये धरातल है
बयार जाने कैसी बहती है
लिए जाते है लोग जाने कहां
साथ अपने,
अपने ही मुर्दे का बोझ उठाए

होश है कि ये बेहोशी है
तड़पती भी है आत्मा रोती भी है
कुछ जोर नहीं चलता
युगों युग से चाहे अनचाहे बहती है

कोई सोच कोई युक्ति काम नहीं आती
जकड़ी यह जंजीरें तोड़ी नहीं जाती
गुलाम हूं जैसे किसी का उसके चलाए चलता हूं
अपनी इस स्थिति का कारण मैं इसीलिए जलता हूं , इसीलिए जलता हूं
© सुशील पवार