...

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" करीब से "
" करीब से "

देखा है उनके दमकते चेहरे का नूर..
बेहद क़रीब से आज मैं ने ख़्वाब में..!

जैसे कोई नूर से भरा हुआ आफ़ताब हो..!
खिला-खिला सा चेहरा जैसे कोई वो माहताब हों..!

हाँ, मेरी चश्म से दीदार हुआ है उनका..
ऐसा लगा जैसे कि ख़्वाब नहीं हक़ीक़त में वो आए हैं, मुझ से रूबरू होने के लिए..!

कुछ मत पूछो मुझ से हालत मेरे दिल की क्या थी..?
उनकी मुस्कान देख कर ही मेरे होश खो गए..!

अपलक उन लम्हों को हम अपने ख़्यालों में अभी समेट ही रहे थे कि वो पलकें झपकते ही जाने कहाँ ओझल हो गए..?

अफ़साने भी बड़े पैमाने पर मोहब्बत के तबीयत से दगा दे जाते हैं..!
खुद को हम बेबस और ठगा-ठगा सा महसूस करते हैं..!

खोया-खोया सा मन मेरा जागते हुए भी यक़ीन करने के लिए राजी नहीं हुआ..!

ख़्वाबों का जहाँ तो बहरूपिया होता है न शीशे से नाज़ुक होते हैं जो सांसों की मानिंद टूट गया था..!

ख़्वाहिशों का क्या कहना है..?
ख़्वाबों का बिसराना तो बदस्तूर हमारे जीवन का अनचाहे हिस्से हैं..!

वो तो आते-जाते हुए किसी कारवाँ के समान होते हैं..
जो किसी की पलकों पर ठहरें तो ठहरें वर्ना मुसाफ़िर के माफ़िक छोड़ कर हमें गैरों से चल दिए..!

जो कभी भी वापस नहीं लौटते हैं और हम बेवकूफ़ों की मानिंद उनकी राह में आस और आखें बिछाए रहते हैं..!

सामने वाला हमें अपने क़रीब होने का छलावा कर के छलिया मुँह मोड़ कर हमारे जज्बातों से खेल जाता है..!

हमारे मन-मस्तिष्क की पीर कितना गहरा है, यह तो हमें ही महसूस होता है..!

हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपने मन और मस्तिष्क को घातक मानसिक संतुलन खोने के असर से शीघ्र ही खुद को बचाएँ इससे पहले कि बहुत देर हो जाए..!

🥀 teres@lways 🥀