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यकीन,,🍂🍂🍂
तेरे लौट आने के वादे पर यकीन करके बैठे हैं
हम तेरे हिज्र को विसाल-ए-ज़मीन करके बैठे हैं
तेरे दिल तक पहुंचने की क्या तरकीब निकाली है
हम अपने ही गम को अपनी सफिन करके बैठे हैं
सफीन (नाव)
इतनी मिठास उस दिल फरोश की बातों में थी
की हम खुद ही अपना ज'हन नमकीन करके बैठे हैं
कुछ और देखने को अब नहीं खोलेंगे अपनी आंखें
हम इन आंखो से दीदार-ए-मेहजबीन करके बैठे हैं
रोज जाता हूं दरगाह, रोज़ बांधता हूं मन्नत का धागा
तुझसे एक मुलाकात हम भी मुमकिन करके बैठे हैं
© char0302
हम तेरे हिज्र को विसाल-ए-ज़मीन करके बैठे हैं
तेरे दिल तक पहुंचने की क्या तरकीब निकाली है
हम अपने ही गम को अपनी सफिन करके बैठे हैं
सफीन (नाव)
इतनी मिठास उस दिल फरोश की बातों में थी
की हम खुद ही अपना ज'हन नमकीन करके बैठे हैं
कुछ और देखने को अब नहीं खोलेंगे अपनी आंखें
हम इन आंखो से दीदार-ए-मेहजबीन करके बैठे हैं
रोज जाता हूं दरगाह, रोज़ बांधता हूं मन्नत का धागा
तुझसे एक मुलाकात हम भी मुमकिन करके बैठे हैं
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