...

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अब मिलना बहुत जरूरी है...
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम क्या जानों क्या दूरी है;
अभिलाषाओं के पथ पर विचलित;
अब मिलना बहुत जरूरी है।

देखा जब अपने चारों ओर,
कुछ खोया खोया सा पाता हूँ;
रुक जाता हूँ मैं बार बार,
ओझल छवि में खो जाता हूँ।

निर्झर की भांति हुए नयन,
और आस अभी भी अधूरी है;
साहस की कश्ती होती डगमग;
अब मिलना बहुत जरूरी है।


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