...

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छलावा
कहे यदि,
दुनिया ही छलावा है,
तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जन्मते ही नवजात शिशु का,
होती है , खुशियों की बौछार ।
सर्वप्रथम माँ ही होती,
शिशु की संपूर्ण दुनिया,
पर ज्यों ही होता,
उसकी दुनिया का विस्तार,
जुड़ जाता अनेक रिश्तो से वो,
कहने के लिए तो, उसके
चारों तरफ हो जाते,
रिश्तो की भरमार।
युवावस्था तक, वह उलझा रहता
इन्हीं रिश्तो की मरीचिका में,
पर जब उसे,
इस सत्य का होता अहसास,
कि यह रिश्ते तो,
मात्र एक छलावा है।
सत्य तो,
सिर्फ, वह परमात्मा है,
उसी परमात्मा में,
इस आत्मा का विलीन होना ही,
सर्वशक्ति को पाना है।
और दुनिया से तर जाना है।
डॉ. अनीता शरण।