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मर्यादा पुरुषोत्तम राम
मर्यादा पुरुषोत्तम राम,
रघु नंदन प्रभु श्री राम।।०।।
श्राप से अहल्या बनी थी ' पाषाण ' ,
पांव स्पर्श से ' नारी ' बनी चट्टान,
पतितपावन हो प्रभु श्री राम,
जग में अवध है तुम्हारे धाम।।१।।मर्यादा.....।
भक्तों में शबरी था उसका नाम,
फूल बिछाना रोज़ था इक काम,
जूठा खिलाया फ़ल खाएं श्री राम,
जग में दीन हैं दयाल श्री राम।।२।।मर्यादा.....।
माता दिए जब कड़े बनवास,
भाई भरत भी छोड़ा शाही विलास,
सीता ने झेला जग में बदनाम,
त्याग से खिला पुरुषोत्तम नाम।।३।।मर्यादा....।।
© Aditya N. Dani
रघु नंदन प्रभु श्री राम।।०।।
श्राप से अहल्या बनी थी ' पाषाण ' ,
पांव स्पर्श से ' नारी ' बनी चट्टान,
पतितपावन हो प्रभु श्री राम,
जग में अवध है तुम्हारे धाम।।१।।मर्यादा.....।
भक्तों में शबरी था उसका नाम,
फूल बिछाना रोज़ था इक काम,
जूठा खिलाया फ़ल खाएं श्री राम,
जग में दीन हैं दयाल श्री राम।।२।।मर्यादा.....।
माता दिए जब कड़े बनवास,
भाई भरत भी छोड़ा शाही विलास,
सीता ने झेला जग में बदनाम,
त्याग से खिला पुरुषोत्तम नाम।।३।।मर्यादा....।।
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