...

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अपने अपने दायरे में
इंसान अपने अपने दार्येरे में आज जीना सीख गया ,
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सब आज सुनसान हो गया ,
घरों में रहना आजकल ख्वाहिश नहीं ,
मानो सबकी मजबुरी बन गया ,
इंसान अपने अपने दायरे में आज जीना सीख गया ।
आज ऐसा वक़्त आया कि इंसान गुमनामी में ,
और जानवर, पक्षी सारे सुकून ले गया ,
सालों से चला आ रहा अनादर प्रगति का,
एक झटके में बदला ले गया ,
इंसान अपने अपने दायरे में आज जीना सीख गया ।
सारा संघर्ष ज़िन्दगी का आज शांत हो गया ,
एक दूसरे को पीछे छोड़ने की दौड़ में ,
सब आज एक ही जगह चुटकियों में ठहर गया ,
इंसान अपने अपने दायरे में आज जीना सीख गया ।
सुकून जो इंसान भूल गया था ,
एक जहरीला वायरस सबको वो सुकून दे गया ,
इंसान अपने अपने दायरे में आज जीना सीख गया ।
चलती थी जिन रास्तों पर हजारों गाड़ियां ,
समय मानो लंबी दौड़ लगाता था ,
शोर ज़ाहा आसमान छू जाता था ।
वहीं आज खाली शांत हवाएं,
मुस्कुराता साफ आसमान,
मानो सब महका गया ।
जाने तो कई ली ,
कई लोगों के अपने छूटे ,
लेकिन आज ये सबको ज़िंदगी का अहम सबक दे गया ।
इंसान को अपने अपने दायरे में आज जीना सीखा गया।।